भारत एक “धर्मनिरपेक्ष संप्रभु, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य” है और वर्तमान में एक “बदलाव के दौर” से गुजर रहा है, पारंपरिक दलगत राजनीति से हटकर, उभरते हुए क्षेत्रीय समीकरण, चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी प्रभाव, और सुशासन तथा पारदर्शिता पर बढ़ते जोर ने भारतीय राजनीति को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। जहाँ युवा मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी, बदलती शासन प्रणालियाँ, और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर बदलते राजनीतिक विमर्श देखे जा रहे हैं।

भारत की राजनीति इस समय एक अहम मोड़ पर खड़ी है। जहाँ एक ओर केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन पर खींचतान जारी है, वहीं दूसरी ओर जनता नए राजनीतिक विकल्पों की तलाश करती दिख रही है। बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक दलों के बीच वैचारिक मतभेद और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज़ हुई है। सोशल मीडिया ने इस माहौल को और भी गरम बना दिया है, क्योंकि अब हर घटना और बयान कुछ ही मिनटों में आम जनता तक पहुँच जाता है।
वर्तमान भारतीय राजनीति का एक बड़ा पहलू यह है कि अब चुनाव सिर्फ विकास के मुद्दों पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय, जातीय और भावनात्मक सवालों पर भी लड़े जा रहे हैं। इससे सत्ता समीकरण बार-बार बदलते नज़र आते हैं। विपक्ष लगातार केंद्र की नीतियों को चुनौती दे रहा है, जबकि सरकार अपनी उपलब्धियों जैसे आधारभूत ढांचा, डिजिटल क्रांति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को प्रमुखता से जनता के सामने रख रही है।

युवाओं की भूमिका भी भारतीय राजनीति में निर्णायक होती जा रही है। रोजगार, शिक्षा और पारदर्शिता जैसे मुद्दों पर युवा वर्ग खुलकर अपनी राय रख रहा है। यही कारण है कि राजनीतिक दल अब युवाओं को अपने अभियान का केंद्र बनाने लगे हैं। हालाँकि, सबसे बड़ी चुनौती अभी भी लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और राजनीति में साफ-सुथरे व्यवहार को लेकर है। भ्रष्टाचार, धनबल और बाहुबल का असर अब भी चुनावों में दिखाई देता है। लेकिन जनता की बढ़ती जागरूकता और मीडिया की सक्रियता यह संकेत देती है कि भविष्य में राजनीति पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर बढ़ सकती है।
कुल मिलाकर, भारतीय राजनीति एक परिवर्तनशील दौर में है। सवाल यह है कि क्या यह बदलाव वास्तव में जनता के जीवन स्तर को बेहतर बनाएगा या फिर यह केवल सत्ता के खेल तक ही सीमित रह जाएगा?
Writer – Sita Sahay











