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अनुच्छेद 21: ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार’ (Article-21)

अनुच्छेद 21 (Article 21) भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। जानें अनुच्छेद 21 का महत्व, अधिकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले …..!

अनुच्छेद 21 का परिचय और महत्व

भारतीय संविधान नागरिकों को कई मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिनमें अनुच्छेद 21 सबसे महत्वपूर्ण है। यह अनुच्छेद कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा, सिवाय उन प्रक्रियाओं के अनुसार जो विधि द्वारा स्थापित की गई हों। सरल भाषा में, इसका मतलब है कि हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार और स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है। इसी वजह से अनुच्छेद 21 को संविधान की आत्मा (Soul of the Constitution) भी कहा जाता है।

अनुच्छेद 21 की खास बात यह है कि इसे केवल जीने का अधिकार नहीं बल्कि एक गरिमामय जीवन जीने का अधिकार माना जाता है। यह प्रावधान न केवल नागरिकों के लिए बल्कि गैर-नागरिकों (विदेशियों) के लिए भी लागू होता है।

अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आने वाले अधिकार

भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर अपने फैसलों के माध्यम से अनुच्छेद 21 को और व्यापक बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जीवन का अधिकार केवल “श्वास लेने” तक सीमित नहीं है बल्कि जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।

अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आने वाले कुछ प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं:

  • शिक्षा का अधिकार (Right to Education – अनुच्छेद 21A)
  • निजता का अधिकार (Right to Privacy)
  • स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं का अधिकार
  • स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त जीवन का अधिकार
  • यातना और अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा
  • निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार
  • आजीविका का अधिकार (Right to Livelihood)

इन अधिकारों के माध्यम से नागरिकों को यह सुनिश्चित किया गया है कि उनका जीवन सुरक्षित और सम्मानजनक रहे।

न्यायपालिका के महत्वपूर्ण निर्णय और अनुच्छेद 21

भारतीय न्यायपालिका ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या करके इसे और मजबूत बनाया है। कुछ प्रमुख निर्णय इस प्रकार हैं:

1. मनिका गांधी बनाम भारत सरकार (1978) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 केवल “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” नहीं है, बल्कि यह न्यायसंगत, उचित और तर्कसंगत प्रक्रिया होनी चाहिए।

2. ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (1985) – कोर्ट ने माना कि आजीविका का अधिकार भी अनुच्छेद 21 का हिस्सा है।

3. के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) – इस फैसले ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।

4. सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) – इसमें कहा गया कि स्वच्छ पर्यावरण भी जीवन का हिस्सा है।

इन निर्णयों से यह स्पष्ट हो गया कि अनुच्छेद 21 केवल “जीवित रहने” का अधिकार नहीं बल्कि पूर्ण जीवन जीने का अधिकार है।

निष्कर्ष: संविधान की आत्मा

अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का ऐसा प्रावधान है जो हर नागरिक को मानव गरिमा, सुरक्षा और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यह अधिकार हमें याद दिलाता है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिकों का जीवन और स्वतंत्रता सर्वोपरि है। यही कारण है कि इसे संविधान की आत्मा कहा गया है।

आज के दौर में जब शिक्षा, स्वास्थ्य, निजता और स्वच्छ पर्यावरण जैसे मुद्दे चर्चा में रहते हैं, तो अनुच्छेद 21 की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। यह अनुच्छेद केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं है बल्कि यह हर भारतीय के जीवन की सुरक्षा कवच है।

Writer – Sita Sahay

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