EWS आरक्षण भारत में 2019 के 103वें संविधान संशोधन के तहत लागू किया गया, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण प्रदान करता है। लेकिन सवाल उठता है — क्या EWS reservation के नाम पर SC-ST-OBC के अधिकार और social justice कमजोर हो रहे हैं? क्या EWS quota ने आरक्षण की मूल भावना को बदल दिया है? इस ब्लॉग में जानिए EWS reservation in India, इसके criteria, impact, controversy और वह सच्चाई जो बताती है कि economic reservation कैसे बन गया एक नया सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा।
EWS आरक्षण — क्या है और किसे मिल रहा है?
Economically Weaker Sections (EWS) आरक्षण एक आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण है, जिसे संविधान में 103वां संशोधन (Constitution (One Hundred and Third Amendment) Act, 2019) के जरिए कानूनी मान्यता दी गई। इसके तहत सामान्य (unreserved) वर्गों में से वे परिवार जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10% आरक्षण का लाभ मिलता है — परंतु यह SC, ST और OBC के लिए नहीं है; यानी जो पहले से आरक्षण के दायरे में हैं, वे EWS के लिए पात्र नहीं माने गए। यह संशोधन 14 जनवरी 2019 के बाद लागू हुआ और केंद्रीय संस्थानों में लागू होने से कुल आरक्षण प्रतिशत (पहले मौजूद आरक्षणों के ऊपर) लगभग 59.5% तक पहुँच गया।

EWS के मानदण्ड (Eligibility) — आय सीमा और संपत्ति मानदण्ड
EWS लाभ पाने के लिए सरकार ने कुछ आर्थिक व संपत्ति-आधारित मानदण्ड तय किए हैं। प्रमुख मापदण्डों में परिवार की वार्षिक सकल आय ₹8,00,000 (₹8 लाख) से कम होना शामिल है। इसके अलावा कृषि भूमि, घर/प्लॉट के आकार आदि पर भी सीमा रखी गई — जैसे कृषि भूमि 5 एकड़ से कम, शहरी इलाकों में घर का क्षेत्रफल व प्लॉट के मानदण्ड। इन मापदण्डों का उद्देश्य यह तय करना था कि वास्तविक आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार ही इस आरक्षण से लाभान्वित हों। ये मानदण्ड संसद व केंद्र सरकार के दस्तावेजों और प्रश्नोत्तर में ऐलान किए गए थे।
क्या EWS न्यायप्रिय (न्यायसंगत) है? — समर्थन और आलोचना
EWS आरक्षण पर बहस गहरी और जटिल है। समर्थक कहते हैं कि आर्थिक पिछड़ापन भी असमानताओं का बड़ा कारण है और इसे दूर करने का उपाय आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए — इससे जाति-आधारित आरक्षण के परे गरीबों को भी मदद मिलती है। आलोचना यह है कि आरक्षण की मूल रूपरेखा ऐतिहासिक और सामाजिक पिछड़ापन (जातीय/सामाजिक) पर आधारित थी — न कि केवल आर्थिक विवशता पर। कुछ कानूनी विद्वान और सामाजिक संगठनों ने कहा कि SC/ST/OBC जैसे समुदायों के ऐतिहासिक हानि-पूर्ति के उद्देश्य पर आर्थिक आरक्षण हस्तक्षेप कर सकता है; साथ ही सवाल उठे कि क्या EWS का क्राइटेरिया (जैसे ₹8 लाख) वैज्ञानिक और डेटा-आधारित है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला जाँचा गया और 7 नवंबर 2022 को उच्च न्यायालय ने 3-2 के मत से 103वें संशोधन की वैधता को बरकरार रखा — यानी न्यायालय ने EWS आरक्षण को संविधान सम्मत ठहराया, परंतु यह बहस अभी भी सार्वजनिक और नीतिगत रूप से जारी है।

EWS से SC/ST/OBC के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं? — नतीजे और संभावित नुकसान
EWS के कारण कुछ वास्तविक और संभावित परिणाम सामने आए हैं जिन्हें समझना आवश्यक है। पहला, क्योंकि EWS 10% आरक्षण “अनारक्षित” श्रेणी के ऊपर जोड़ा गया है, कुल आरक्षण प्रतिशत 50% से ऊपर चला गया (केंद्र में ~59.5% तक कहा जाता है) — इससे अनारक्षित समूहों के बीच से बाहर निकले स्थानों का पुनर्वितरण हुआ, और SC/ST/OBC की तुलना में प्रतिस्पर्धा का परिदृश्य बदल सकता है। आलोचक कहते हैं कि संसाधन सीमित हैं — सीटें और नौकरियाँ सीमित हैं — और अतिरिक्त आरक्षण से भौतिक अवसर कम होकर सामाजिक समूहों के बीच टकराव बढ़ सकता है। कुछ का तर्क यह भी है कि EWS आरक्षण का जो लाभ हुआ है, वह अक्सर ऐसे लोगों को मिल रहा है जिनके पास सामाजिक पूंजी (education, urban connectivity) पहले से है — जिससे तथाकथित “forward caste” के गरीबों को लाभ मिलना और पिछड़े वर्गों के लिए प्रतिस्पर्धा और कठिन हो सकती है। साथ ही, EWS के मानदण्डों पर उठे सवाल — क्या ₹8 लाख सचमुच “कम आय” की परिभाषा है—पर भी बहस है। विशेषज्ञों ने कहा कि डेटा-आधारित आकलन और प्रभाव अध्ययन की कमी है; कुछ रिपोर्ट्स ने EWS के पीछे रखे गए आँकड़ों को ‘अपर्याप्त’ या ‘अनुसंधान-रहित’ बताया।
क्या सुधार की आवश्यकता है? — व्यावहारिक सुझाव और नीतिगत सुधार
EWS नीति में सुधार की गुंजाइश और आवश्यकता दोनों हैं — खासकर तब जब आरक्षण जैसी संवेदनशील सामाजिक नीति बनानी हो। कुछ मुख्य सुझाव जो नीति निर्माताओं, न्यायालय और समाज के बीच विचारार्थ होने चाहिए:
- डेटा-आधारित रीव्यू: EWS की आय-सीमा और संपत्ति मानदण्डों का समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर के घरेलू आय/खर्च सर्वे (NSS, PLFS आदि) के आधार पर पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए। इससे पता चलेगा कि कौन वास्तव में लाभान्वित हो रहा है।
- लक्षित लक्ष्यों (Targeting) और प्रमाणिकता: EWS प्रमाणपत्रों की सत्यता और धोखाधड़ी रोकने के लिए मजबूत सत्यापन, स्थानीय प्रमाण और डिजिटल रिकॉर्डिंग आवश्यक है।
- वैकल्पिक राहत-माप (Alternative measures): सीधे आर्थिक सहायता, छात्रवृत्ति, छात्र सहायता योजनाएँ, ट्यूशन सहायता, और लक्षित सामाजिक कार्यक्रमों द्वारा भी आर्थिक रूप से कमजोरों को समर्थन दिया जा सकता है — यानी केवल आरक्षण का विकल्प नहीं।
- सम्पूर्ण प्रभाव आकलन (Impact Assessment): केंद्र और राज्यों को EWS लागू करने के बाद सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का अध्ययन सार्वजनिक रूप से करवाना चाहिए — ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या सामाजिक समावेशन घट रहा है या बढ़ रहा है।
- आरक्षण समन्वय (Quota coordination): विभिन्न प्रकार के आरक्षणों का तालमेल और “डबल लाभ” (एक ही व्यक्ति/समुदाय का कई श्रेणियों से लाभ लेना) रोकने के लिए पारदर्शी नियम हों।

निष्कर्ष — संतुलन चाहिए, जल्दबाजी नहीं
EWS आरक्षण का उद्देश्य सही — आर्थिक रूप से कमजोरों को मुख्यधारा में लाना — सकारात्मक है, पर नियम, क्राइटेरिया और कार्यान्वयन इतनी जटिल नीतियों में निर्णायक होते हैं। 103वें संशोधन और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (7 नवम्बर 2022) ने इस नीति को वैध कर दिया है, पर साथ ही आलोचना और दावे भी स्पष्ट हैं कि इसने पारंपरिक सामाजिक न्याय के तरीकों पर प्रभाव डाला है और इसके दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विस्तृत अध्ययन अभी आवश्यक है। नीति-makers को चाहिए कि वे पारदर्शिता, डेटा-आधारित समीक्षा और विविध सामाजिक सहायता उपकरणों के संयोजन से एक ऐसा मॉडल बनाएं जो वास्तविक गरीबों तक पहुँच सुनिश्चित करे बिना अन्य पिछड़े वर्गों के मौलिक अधिकारों में अनावश्यक कमी किए।
Writer – Sita Sahay











