1️⃣ भारतीय शिक्षा व्यवस्था: समान अवसर का अधूरा वादा
भारत का शिक्षा तंत्र (Education System in India) दुनिया के सबसे बड़े शिक्षा तंत्रों में से एक है। 150 करोड़ की आबादी में से लगभग 26 करोड़ बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह शिक्षा व्यवस्था निचले वर्ग (Lower Class Equality) के बच्चों के लिए समान अवसर उपलब्ध करा पा रही है? आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 32% बच्चों के पास स्मार्टफोन या डिजिटल क्लास की सुविधा नहीं है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच कठिन हो जाती है। शहरों और गाँवों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता का फासला बहुत बड़ा है। सरकारी स्कूलों में अभी भी शिक्षक-छात्र अनुपात 1:40 है, जबकि आदर्श स्थिति 1:30 मानी जाती है। इससे साफ़ है कि शिक्षा में समानता (Equality in Education) अभी भी अधूरी है।

2️⃣ आर्थिक असमानता और शिक्षा तक पहुँच की चुनौती
भारत के विकास के बावजूद निचले वर्गों के परिवार आज भी आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। शिक्षा में समान अवसर (Equal Opportunity in Education) तभी संभव है जब हर बच्चा किताब, यूनिफॉर्म और डिजिटल साधन वहन कर सके। लेकिन हकीकत यह है कि 2024-25 में शहरी इलाकों के बच्चों की औसत मासिक शिक्षा पर होने वाला खर्च लगभग ₹3,200 है, जबकि ग्रामीण परिवार केवल ₹850 ही खर्च कर पाते हैं। इसके कारण लगभग 18% बच्चे दसवीं कक्षा से पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों का ड्रॉपआउट रेट अभी भी 16% से अधिक है। यह दर्शाता है कि शिक्षा व्यवस्था (Indian Education System) अभी निचले तबके की आर्थिक स्थिति के अनुसार अनुकूल नहीं हो पाई है।

3️⃣ उच्च शिक्षा और रोजगार में असमानता
सिर्फ प्राथमिक और माध्यमिक स्तर ही नहीं, उच्च शिक्षा में भी असमानता साफ़ नज़र आती है। भारत में उच्च शिक्षा (Higher Education in India) में नामांकन दर 29% है, लेकिन निचले वर्ग के विद्यार्थियों में यह दर केवल 18% के आसपास है। इसका सबसे बड़ा कारण है फीस और कोचिंग पर होने वाला खर्च, जिसे गरीब परिवार नहीं उठा पाते। इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे क्षेत्रों में प्रवेश लेने वाले छात्रों में से 65% उच्च और मध्यवर्ग से आते हैं। जबकि निचले वर्ग के छात्रों की संख्या मुश्किल से 20% तक पहुँच पाती है। रोजगार (Employment Opportunities) के क्षेत्र में भी यह खाई और गहरी हो जाती है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण (Reservation in India) ने कुछ हद तक मदद की है, लेकिन निजी क्षेत्र (Private Sector Jobs) में अब भी निचले वर्ग की हिस्सेदारी बेहद कम है। इससे साफ़ है कि शिक्षा से लेकर रोजगार तक असली समानता (Real Equality in Education and Jobs) अभी दूर है।

4️⃣ शिक्षा सुधार और भविष्य की राह
अगर भारत को सामाजिक और आर्थिक समानता (Social and Economic Equality) हासिल करनी है, तो शिक्षा सुधार (Indian Education Reforms) सबसे बड़ा हथियार हो सकता है। नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) ने कई सुधारों का वादा किया है, जैसे मातृभाषा में शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और डिजिटल लर्निंग। लेकिन ज़रूरी है कि इन नीतियों का क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर सही तरीके से हो। निचले वर्ग के बच्चों को मुफ्त डिजिटल डिवाइस, गुणवत्तापूर्ण शिक्षक और छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए। आने वाले 10 सालों में भारत की कार्यशील जनसंख्या 100 करोड़ से अधिक होगी। यदि शिक्षा में समान अवसर (Education Equality in India) उपलब्ध कराए जाते हैं तो भारत न केवल आर्थिक महाशक्ति बनेगा बल्कि सामाजिक समानता (Social Justice through Education) का भी एक मजबूत उदाहरण पेश करेगा। अमृतकाल 2047 तक भारत को “शिक्षा से सशक्त समाज” बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

निष्कर्ष और अनुरोध (Conclusion & Request)
भारत की शिक्षा व्यवस्था ने वर्षों में प्रगति की है, लेकिन निचले वर्गों के लिए समान अवसर अब भी अधूरे हैं। शिक्षा ही वह साधन है जो गरीबी की जंजीरों को तोड़कर सामाजिक समानता ला सकता है। सरकार और शिक्षा मंत्रालय से अनुरोध है कि वे निचले वर्ग के बच्चों को मुफ्त डिजिटल संसाधन, छात्रवृत्ति और गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की सुविधा दें। अगर शिक्षा सुधारों को ज़मीनी स्तर पर लागू किया जाए तो अमृतकाल 2047 तक भारत न केवल आर्थिक महाशक्ति बनेगा, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समानता आधारित समाज की मिसाल भी पेश करेगा।
Writer – Somvir Singh












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सरकार और शिक्षा मंत्रालय से अनुरोध है कि वे निचले वर्ग के बच्चों को मुफ्त डिजिटल संसाधन, छात्रवृत्ति और गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की सुविधा दें। शिक्षा सुधारों को ज़मीनी स्तर पर लागू किया जाए तो अमृतकाल 2047 तक भारत न केवल आर्थिक महाशक्ति बनेगा, @PMOIndia @HMOIndia
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Education system improve hona chahiye