Home / Sports / भारतीय राजनीति पर कटाक्ष: ‘कृषि प्रधान’ से ‘कुर्सी प्रधान’ तक का सफर

भारतीय राजनीति पर कटाक्ष: ‘कृषि प्रधान’ से ‘कुर्सी प्रधान’ तक का सफर

भारतीय राजनीति पर कटाक्ष: ‘कृषि प्रधान’ से ‘कुर्सी प्रधान’ तक का सफर, कृषि प्रधान देश से ‘कुर्सी प्रधान’ देश तक, ‘सोने की चिड़िया’ से ‘कर्जदार भारत’ तक, सेना का गौरव ‘अग्निवीर’ की आग में, डिजिटल इंडिया या डिजिटल धोखा?, नोटबंदी, GST और जनता की टूटी कमर, युवाओं के सपने, Reels में कैद, पेपर लीक से टूटा भविष्य, राजनीति का असली चेहरा, अब जागने का वक्त है

भारत, जिसे कभी “सोने की चिड़िया” कहा जाता था, आज राजनीति के पिंजरे में कैद है।

यह देश जहां पहले कृषि, संस्कृति और कर्म सर्वोपरि थे, आज वहां “कुर्सी, कैंडिडेट और कैमरा” सर्वोच्च हैं। हर नेता अपने भाषणों में जनता के दुख-दर्द की बातें करता है, लेकिन चुनाव के बाद वही जनता रोड के गड्ढों और बिलों में गुम हो जाती है। भारतीय राजनीति अब सेवा का नहीं, सत्ता का बाजार बन चुकी है — जहाँ जनता “ग्राहक” है और नेता “विक्रेता”। राजनीति का स्तर गिर नहीं रहा, बल्कि ज़मीन के नीचे जाकर बंकर बन चुका है।

#BhartiyaRajneeti #PoliticalSatire #IndianPolitics

हर चुनाव में वही वादे, वही झूठे आँकड़े, वही “विकास हुआ है” का नारा।

लेकिन हकीकत ये है कि जनता की थाली में दाल बची है रोजगार का स्वाद।

🌾 कृषि प्रधान देश से ‘कुर्सी प्रधान’ देश तक

भारत की असली ताकत उसका किसान था — जिसने कभी भूखा रहकर देश को खिलाया।

लेकिन अब वही किसान राजनीति का “पोस्टर बॉय” बन गया है। नेता मंच पर कहते हैं “जय किसान”, लेकिन मंच से उतरते ही भूल जाते हैं कि किसान ज़िंदा भी है। कृषि प्रधान देश की पहचान अब “कुर्सी प्रधान राजनीति” ने छीन ली है। खेती के नाम पर योजनाएं बनती हैं, लेकिन उसका फायदा बिचौलियों को मिलता है। किसानों को राहत नहीं, बल्कि राहत पैकेजों की लिस्ट दी जाती है। कर्ज माफ करने का वादा तो हर चुनाव में होता है, पर माफ होता है सिर्फ वोट का वादा।

सरकारें बदलती हैं, लेकिन किसानों की हालत नहीं। भारत अगर सच में “विश्वगुरु” बनना चाहता है, तो उसे पहले अपने अन्नदाता की इज़्ज़त लौटानी होगी।

#Kisan #Agriculture #FarmersIndia #PoliticalReality

💰 ‘सोने की चिड़िया’ से ‘कर्जदार भारत’ तक

कभी भारत की पहचान थी “सोने की चिड़िया”, आज है “सबसे कर्जदार देश”।

जहाँ पहले विदेशी हमारे सोने पर नजर रखते थे, अब हमारे नेताओं की नजर विदेशी कर्ज और निवेश पर है। महंगाई आसमान पर है, लेकिन नेताओं के भाषणों में सब “अच्छे दिन” ही हैं। नोटबंदी ने जनता की जेब खाली कर दी, और GST ने उनकी सांसें रोक दीं। जो व्यापारी देश की अर्थव्यवस्था चलाते थे, अब टैक्स सिस्टम में उलझे पड़े हैं। देश की GDP भले बढ़ रही हो, लेकिन जेब में पैसे घटते जा रहे हैं। कर्ज बढ़ रहा है, आमदनी घट रही है — और इस आर्थिक जाल में फंसी है आम जनता।

सोने की चिड़िया” अब “कागज़ की चिड़िया” बन चुकी है, जिसे हर बजट में उड़ाया जाता है।

#IndianEconomy #Demonetisation #GSTIndia #EconomicCrisis

🔥 सेना का गौरव ‘अग्निवीर’ की आग में

भारत की सेना दुनिया की सबसे बहादुर सेनाओं में से एक मानी जाती है।

लेकिन जब “अग्निवीर योजना” आई, तो देश के युवाओं के जोश में एक अनिश्चितता का धुआँ भर गया।

चार साल की नौकरी, पेंशन नहीं, स्थिरता नहीं — ये देशभक्ति है या बेरोजगारी का नया रूप? सेना का सम्मान अब प्रचार पोस्टरों में रह गया है। जवानों के जज़्बे को राजनैतिक भाषणों का हिस्सा बना दिया गया है। जो देश अपने सैनिकों को “वीर” नहीं “अग्निवीर” बना रहा है, वह सुरक्षा से ज्यादा प्रचार चाहता है।

नेताओं के लिए सेना चुनावी मुद्दा बन गई है, और सैनिकों की कुर्बानी अब “न्यूज़ हेडलाइन”।

देश की सुरक्षा पर राजनीति का साया कभी इतना गहरा नहीं था।

#Agniveer #IndianArmy #NationalSecurity #DeshBhakti

💻 डिजिटल इंडिया या डिजिटल धोखा?

जब “डिजिटल इंडिया” की घोषणा हुई थी, तो लगा था कि भारत तकनीकी क्रांति की ओर बढ़ रहा है।

लेकिन जब EVM मशीनों से राजनीति खेलने लगी, तो “डिजिटल” शब्द पर भरोसा हिल गया। डिजिटल इंडिया का सपना था जनता को सशक्त बनाना — पर अब यह सशक्तिकरण नहीं, सत्ता-संवर्धन बन गया है। सभी ऐप्स, योजनाएँ, पोर्टल्स जनता की मदद के बजाय वोट बैंक की निगरानी के साधन बन गए हैं।

कभी-कभी लगता है, “डिजिटल इंडिया” के नाम पर जनता को “डिजिटल मूर्ख” बनाया जा रहा है।

क्योंकि डेटा अब लोकतंत्र की शक्ति नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार बन गया है।

#DigitalIndia #EVM #Democracy #TechnologyPolitics

💸 नोटबंदी, GST और जनता की टूटी कमर

2016 में आई नोटबंदी को बताया गया था “काला धन खत्म करने का सबसे बड़ा कदम”।

पर जो खत्म हुआ, वो था छोटे व्यापारियों का कारोबार और मजदूरों का विश्वास। काले धन की जगह अब “काला अनुभव” हर नागरिक के पास है। फिर आई GST, जिसे “एक देश, एक टैक्स” कहा गया।

असल में हुआ “एक टैक्स, कई त्रासदी”। व्यापारी आज भी समझ नहीं पा रहे कि कौन-सा टैक्स किस स्लैब में आता है।

और अब “GST उत्सव” मनाकर जनता को बताया जाता है कि ये सफलता है —

लेकिन जनता पूछती है, “सफलता किसकी?” राजनीति की या हमारी बर्बादी की?

#GSTIndia #Demonetisation #EconomicReform #BusinessIndia

👦 युवाओं के सपने, Reels में कैद

भारत का युवा दुनिया में सबसे बड़ा “वर्कफोर्स” है।

लेकिन जब नौकरी नहीं मिलती, तो वही युवा Reels बनाता है, Memes बनाता है, और नेताओं पर हँसता है। क्योंकि रोने से अच्छा है हँसना — वो भी व्यंग्य में। रोजगार योजनाएँ कागज़ों में हैं, इंटरव्यू भ्रष्टाचार में और सेलेक्शन जुगाड़ में। हर दूसरे महीने कोई न कोई Paper Leak होता है, और फिर युवाओं पर लाठीचार्ज।

देश का भविष्य सड़कों पर न्याय मांगता है, और नेता मंच से कहते हैं — “युवाओं पर गर्व है।”अगर यही गर्व है, तो ये अपमान से कम नहीं।

#Youth #Unemployment #SkillIndia #ReelVsReal

📜 पेपर लीक से टूटा भविष्य

हर बार जब किसी परीक्षा का पेपर लीक होता है, तो एक सपना मर जाता है।

एक छात्र की नींद, मेहनत और उम्मीद सब बर्बाद हो जाती है। लेकिन सरकार की प्रतिक्रिया वही — “जांच चल रही है।”भर्ती घोटालों और भ्रष्टाचार ने युवाओं की नींव हिला दी है। देश का “Future” अब बेरोजगारी की फाइलों में फंसा है। और जब छात्र विरोध करते हैं, तो उन्हें लाठीचार्ज का तोहफा मिलता है।

राजनीति ने युवाओं को उम्मीद नहीं, निराशा का प्रमाणपत्र दिया है।

#PaperLeak #StudentProtest #EducationSystem #YouthIndia

🪑 राजनीति का असली चेहरा

आज की राजनीति “जनसेवा” नहीं, “जनसेल्फी” बन गई है। जहाँ नेता जनता के बीच नहीं, बल्कि कैमरे के सामने जाते हैं। हर काम में PR, हर बात में ड्रामा — और हर गलती में “जुमला”। लोकतंत्र का असली मज़ाक यही है कि जनता अब सत्ता की सीढ़ी बन चुकी है।

राजनीति अब कुर्सी बचाने की कला है, देश चलाने की नहीं।

#IndianPolitics #Corruption #Democracy #PoliticalDrama

Writer – Sita Sahay

Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *