Home / Sports / भारतीय संसद सत्र और अनुच्छेद 85: लोकतंत्र में संसद की अहमियत (Article-85)

भारतीय संसद सत्र और अनुच्छेद 85: लोकतंत्र में संसद की अहमियत (Article-85)

🏛️ भारतीय संसद सत्र: –

भारतीय लोकतंत्र की नींव संसद पर टिकी हुई है। संसद के माध्यम से ही देश में कानून बनते हैं, सरकारी नीतियाँ तय होती हैं और जनता की आवाज़ सीधे सरकार तक पहुँचती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय संसद साल में कितने दिन चलती है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार, संसद के दो सत्रों के बीच का अंतर छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि संसद साल में कम से कम दो बार अवश्य बैठती है।

व्यवहार में, संसद आमतौर पर तीन सत्रों में बैठती है – बजट सत्र (जनवरी से मई), मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर) और शीतकालीन सत्र (नवंबर से दिसंबर)। प्रत्येक सत्र में संसद में औसतन 20 से 40 दिन कार्य होते हैं। साल में कुल मिलाकर संसद लगभग 60 से 80 दिन चलती है, जबकि 1950-1970 के दशक में यह औसत 120 दिन था। यह कमी दर्शाती है कि समय के साथ संसद की सक्रियता में कमी आई है।

🏛️ संसद के प्रमुख तीन सत्र

भारतीय संसद साल में आमतौर पर तीन सत्रों में बैठती है।

सत्र का नाम समयावधि औसत अवधि

🧾 बजट सत्र जनवरी – मई 35–40 दिन
🌧️ मानसून सत्र जुलाई – सितंबर 20–25 दिन
❄️ शीतकालीन सत्र नवंबर – दिसंबर 15–20 दिन

📅 औसतन संसद हर साल 60–80 दिन चलती है।
यह संख्या पहले की तुलना में कम हुई है; 1950–1970 के दशक में संसद लगभग 120 दिन चलती थी।

⚖️ अनुच्छेद 85: संसद के सत्र और राष्ट्रपति की भूमिका

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85 संसद के सत्र, स्थगन और भंग करने का प्रावधान करता है। इसके अनुसार, राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को बुलाने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन दो सत्रों के बीच का अंतर छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति किसी भी सत्र को स्थगित (Prorogue) कर सकते हैं और लोकसभा को भंग (Dissolve) भी कर सकते हैं।

संवैधानिक रूप से यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि सरकार जनता और संसद के प्रति जवाबदेह रहे। प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति संसद को बुलाते हैं। यह अनुच्छेद लोकतंत्र में पारदर्शिता बनाए रखने और लंबे समय तक संसद को बिना बुलाए शासन चलाने से रोकने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

📜 संवैधानिक प्रावधान (Article 85)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85 संसद के सत्र, स्थगन और भंग करने के अधिकार को निर्धारित करता है।

दो सत्रों के बीच का अंतर 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिए।
संसद को बुलाने और स्थगित करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है, जो प्रधानमंत्री की सलाह पर कार्य करते हैं।

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संसद नियमित रूप से चले और सरकार जनता के प्रति जवाबदेह बनी रहे।

⚠️ संसद न चलने के नुकसान

संसद का ठीक से न चलना केवल राजनीतिक गतिरोध नहीं है, बल्कि इसके गंभीर नकारात्मक प्रभाव भी हैं। सबसे पहले, कई महत्वपूर्ण विधेयक (Bills) पास नहीं हो पाते, जिससे कानून निर्माण की प्रक्रिया ठप पड़ जाती है। दूसरा, वित्तीय कामकाज जैसे बजट और सरकारी योजनाओं की मंजूरी में देरी होती है।

इसके अलावा, संसद का कम चलना विपक्ष की जवाबदेही की भूमिका को कमजोर करता है। सांसद सवाल नहीं पूछ पाते, और सरकार की गतिविधियों की निगरानी मुश्किल हो जाती है। लोकतंत्र की मूल भावना “जनता की आवाज़ संसद तक पहुँचे” कमजोर हो जाती है। यदि संसद लंबे समय तक निष्क्रिय रहती है, तो अर्थव्यवस्था और नीतिगत सुधारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

⚠️ यदि संसद ठीक से न चले तो क्या नुकसान होते हैं?

  1. 📕 कानून निर्माण ठप पड़ता है
    – जरूरी बिल पास नहीं हो पाते।
  2. 💰 वित्तीय काम रुक जाता है
    – बजट और सरकारी योजनाओं की मंजूरी में देरी होती है।
  3. 🗣️ जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही घटती है
    – विपक्ष सवाल नहीं पूछ पाता।
  4. ⚖️ लोकतंत्र की भावना कमजोर होती है
    – जनता की आवाज़ संसद तक नहीं पहुँच पाती।

📊 निष्कर्ष: सक्रिय संसद, सशक्त लोकतंत्र

भारतीय संसद केवल कानून बनाने का मंच नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा है। सक्रिय संसद ही यह सुनिश्चित करती है कि सरकार जवाबदेह रहे, जनता की समस्याएँ उठाई जाएँ और नीति निर्माण में पारदर्शिता बनी रहे। अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद को नियमित रूप से बुलाने का प्रावधान लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करता है।

इतिहास दर्शाता है कि पहले संसद अधिक दिन चलती थी, जिससे लोकतंत्र में सहभागिता अधिक थी। आज कम दिन चलने के बावजूद, यह आवश्यक है कि संसद को नियमित और सक्रिय रखा जाए। यही लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है। भारतीय संसद सत्र, अनुच्छेद 85 और उनकी भूमिका पर ध्यान देना हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही तय करता है कि लोकतंत्र सशक्त और जवाबदेह रहेगा।

📊 ऐतिहासिक तुलना

दशक औसत दिन

1950–1970 लगभग 120 दिन
2000–2025 लगभग 65 दिन

📉 संसद की सक्रियता लगभग आधी रह गई है।

Writer – Sita Sahay

Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *