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अनुच्छेद 25: भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का आधार स्तंभ (Article-25)

जानिए अनुच्छेद 25 क्या है, इसका महत्व, लागू न होने के नुकसान और भारत में धर्म की स्वतंत्रता क्यों जरूरी है। #Article25 #IndianConstitution

भारत एक ऐसा देश है जहाँ विविधता में एकता की पहचान है। यहाँ हर धर्म, संप्रदाय और विचारधारा को बराबर सम्मान देने का सिद्धांत संविधान में निहित है। इसी सिद्धांत की रक्षा के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 25 (Article 25) को जोड़ा, जो हर नागरिक को “धर्म की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार” (Right to Freedom of Religion) प्रदान करता है। यह अनुच्छेद न केवल धार्मिक समानता की गारंटी देता है बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी आस्था और पूजा-पद्धति में भेदभाव का शिकार न बने।

🔸 अनुच्छेद 25 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25(1) कहता है कि –
“हर व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसका पालन करने का अधिकार है।”
इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी अन्य धर्म का अनुयायी, उसे अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।

हालाँकि, यह स्वतंत्रता पूर्णतः निरंकुश नहीं है। अनुच्छेद 25 के तहत यह अधिकार लोक व्यवस्था (Public Order), नैतिकता (Morality) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है। यानी यदि किसी व्यक्ति के धार्मिक कर्मों से समाज की शांति, व्यवस्था या अन्य लोगों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है, तो राज्य को हस्तक्षेप करने का अधिकार है।

🔸 अनुच्छेद 25 के लागू न होने से होने वाले नुकसान

अगर अनुच्छेद 25 को सही ढंग से लागू नहीं किया जाए या इसका दुरुपयोग किया जाए, तो समाज में गहरे नुकसान हो सकते हैं।

  1. धार्मिक असहिष्णुता बढ़ेगी – जब लोगों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, तो असंतोष और हिंसा फैल सकती है।
  2. सामाजिक एकता पर खतरा – भारत जैसे विविध देश में अगर धार्मिक स्वतंत्रता सीमित की जाए, तो जातीय और साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।
  3. अल्पसंख्यकों में भय और असुरक्षा – अनुच्छेद 25 की अनदेखी से अल्पसंख्यक समुदायों में यह भावना जन्म ले सकती है कि उनकी पहचान खतरे में है।
  4. संविधान की आत्मा पर चोट – धार्मिक स्वतंत्रता हमारे संविधान की आत्मा है। अगर यह अधिकार कमजोर होगा, तो लोकतंत्र की नींव भी हिल सकती है।

इन नुकसानों से यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 25 का सही कार्यान्वयन न केवल धार्मिक स्वतंत्रता बल्कि राष्ट्रीय एकता और सद्भाव बनाए रखने के लिए भी जरूरी है।

🔸 अनुच्छेद 25 का महत्व और लागू होना क्यों जरूरी है

अनुच्छेद 25 केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। यह अनुच्छेद बताता है कि भारत किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि सभी धर्मों का समान रूप से आदर करने वाला देश है।

इस अनुच्छेद के लागू होने से –

  • हर व्यक्ति बिना डर के अपनी पूजा-पद्धति अपना सकता है।
  • धार्मिक भेदभाव और दमन की संभावना कम होती है।
  • राज्य धर्मनिरपेक्षता (Secularism) के सिद्धांत को सशक्त बनाता है।
  • समाज में सहिष्णुता और भाईचारा बढ़ता है।

आज के समय में जब धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, तब अनुच्छेद 25 का सशक्त पालन और भी जरूरी हो जाता है। यह अनुच्छेद न केवल व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि धर्म के नाम पर किसी के साथ अन्याय न हो।

🔸 निष्कर्ष: धर्म की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र की पहचान

भारत का लोकतंत्र तभी मजबूत रहेगा जब हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिलेगा। अनुच्छेद 25 उस समानता की सबसे बड़ी गारंटी है। यह हमें याद दिलाता है कि धर्म एक व्यक्तिगत आस्था है, न कि विभाजन का कारण। इसलिए इस अनुच्छेद का सही अर्थों में लागू होना न केवल आवश्यक है बल्कि भारत के भविष्य के लिए अनिवार्य है।

संविधान की यह धारा हमें यह सिखाती है कि –
“धर्म बदल सकता है, लेकिन मानवता ही सच्चा धर्म है।”

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Writer – Sita Sahay

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