(भारत में बेरोज़गारी पर युवाओं की चेतावनी और संघर्ष की पुकार)
भारत में बेरोज़गारी की सच्चाई
भारत में बेरोज़गारी दर अप्रैल 2025 में लगभग 5.1% रही, जहाँ युवाओं (15-29 वर्ष) में नौकरी न मिलना सबसे बड़ी समस्या है। बड़े-शहरों में बेरोज़गारी दर करीब 17.2% है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 12.3% है। महिला बेरोज़गारी और शिक्षा-रोज़गार असंगति (education-employment mismatch) से जूझ रही है। अगर सरकार रोज़गार नहीं देगी, तो “इंकलाब” की मांग जबरदस्त होगी।
भारत का युवा – डिग्रीधारी पर निराश
भारत विश्व की सबसे युवा आबादी वाला देश है — लगभग 65% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। लेकिन दुखद सत्य यह है कि यही युवा वर्ग आज सबसे अधिक बेरोज़गारी का शिकार है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (CMIE) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2025 तक राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 8.3% तक पहुँच गई है। लेकिन यदि केवल 15 से 29 वर्ष के युवाओं की बात करें, तो यह आँकड़ा 25% से भी अधिक है।
ये आंकड़े केवल आँकड़े नहीं — यह लाखों अधूरी उम्मीदों, अधूरे सपनों और टूटी हिम्मतों की कहानी है।
हर साल 2.5 करोड़ से अधिक छात्र स्नातक या उच्च शिक्षा पूरी करते हैं, लेकिन सरकारी भर्तियाँ ठप पड़ी हैं।
रेलवे, SSC, बैंकिंग, और राज्य सेवा आयोगों की भर्तियों में या तो पेपर लीक, या लंबी देरी, या फिर भ्रष्टाचार की खबरें सामने आती हैं।
सरकारें चुनावी मंचों पर रोजगार का वादा करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज लाखों युवा सिर्फ एक “भर्ती नोटिफिकेशन” के इंतजार में उम्रदराज हो चुके हैं। हर दूसरे गाँव में कोई न कोई “भर्ती अभ्यर्थी” ऐसा है, जो 7-8 साल से तैयारी कर रहा है, पर अब तक नियुक्ति नहीं मिली।

खोखले वादे, ठंडी फाइलें और टूटी उम्मीदें
जब चुनाव आते हैं, तो हर पार्टी कहती है — “हर जिले में उद्योग लगाएंगे, हर घर को रोजगार देंगे।”
लेकिन सच्चाई यह है कि रोज़गार नीति केवल घोषणाओं तक सीमित रह गई है।
2022–2025 के बीच केंद्र और राज्य स्तर पर घोषित 50 लाख नौकरियों में से केवल 18 लाख नियुक्तियाँ ही पूरी हुईं।
बाकी अभी भी अधर में लटकी हैं या कोर्ट में पेंडिंग हैं।
“Make in India” और “Digital India” जैसी योजनाओं के बावजूद, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार घटा है।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पाँच सालों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 11% नौकरियाँ कम हुई हैं।
यह वही सेक्टर था जो देश के युवाओं को रोजगार देने की रीढ़ माना जाता था।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है।
भारतीय श्रम मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में 45% से अधिक लोग आज भी मौसमी मजदूरी पर निर्भर हैं, जबकि गैर-कृषि रोजगार घटता जा रहा है।
“Gig Economy” यानी ऐप-आधारित नौकरियों में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन वहाँ न सुरक्षा है, न स्थायित्व।
सरकारें कहती हैं — “स्टार्टअप बनाओ, खुद का रोजगार करो।”
पर क्या हर युवा उद्यमी बन सकता है?
अगर हर कोई उद्यमी बन जाए, तो मजदूर कौन होगा? शिक्षक कौन बनेगा? डॉक्टर, इंजीनियर, या वैज्ञानिक कहाँ से आएँगे?
यानी, रोजगार की जिम्मेदारी सरकार से हटाकर युवा के सिर डाल दी गई है।

अब सब्र नहीं — अब इंकलाब की दस्तक
भारत का युवा अब चुप नहीं है।
अब वह सिर्फ “फॉर्म भरने” या “एडमिट कार्ड डाउनलोड” करने वाला नहीं, बल्कि “सिस्टम से जवाब मांगने वाला” बन चुका है।
हर जगह एक ही आवाज़ गूंज रही है —
🔥 “अगर तुम नहीं दोगे रोज़गार, तो हम लिखेंगे इंकलाब!”
यह नारा केवल ग़ुस्से का प्रतीक नहीं, बल्कि बदलाव की भूमिका है।
अब युवा सिर्फ नौकरी नहीं, सम्मानजनक रोजगार और नीति-सुधार चाहता है।
वह चाहता है कि भर्ती प्रक्रिया समय पर पूरी हो, पेपर लीक पर सख्त कानून बने, और पारदर्शी व्यवस्था लागू की जाए।
2024 के बाद से, देश में 35 से अधिक छात्र आंदोलनों ने बेरोज़गारी के खिलाफ प्रदर्शन किया है —
चाहे वह उत्तर प्रदेश का भर्ती घोटाला हो, या बिहार की रद्द परीक्षाएँ, या फिर राजस्थान में चयन प्रक्रिया की देरी —
हर जगह युवाओं ने सड़कों पर उतरकर यह साबित किया है कि अब चुप्पी नहीं, कार्रवाई चाहिए।
सोशल मीडिया पर भी यह आंदोलन तेज़ी से फैल रहा है।
हैशटैग्स जैसे #GiveEmployment, #RojgarDoYaGaddiChhodo, और #YouthRevolt लगातार ट्रेंड कर रहे हैं।
यानी, डिजिटल भारत का युवा अब डिजिटल क्रांति से सरकार को आइना दिखा रहा है।

भारत में हालिया Periodic Labour Force Survey (PLFS) के मुताबिक, अप्रैल 2025 में कुल बेरोज़गारी दर 5.1% रही, युवाओं (15-29 yrs) में यह दर करीब 13.8%, शहरी क्षेत्रों में नौकरी-न होने की दर अधिक, लगभग 17.2%, जबकि ग्रामीण इलाकों में 12.3%, यह स्थिति शिक्षित बेरोज़गारों के लिए और भी ज़्यादा कठिन है क्योंकि डिग्री होने के बाद भी रोज़गार न मिलना आम बात है, अगर सरकार ने ठोस कदम न उठाए, तो बेरोज़गार जनता का आक्रोश “इंकलाब” जैसी मांग में बदल सकता है।
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Writer – Somvir Singh











