अंतरराष्ट्रीय व्यापार और कूटनीति की दुनिया में हाल ही में एक अहम बहस छिड़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन पर 100% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा। उनका तर्क है कि इन देशों से आयातित वस्तुएं अमेरिकी बाजार को असंतुलित कर रही हैं और घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचा रही हैं। ट्रंप का यह कदम “अमेरिका फर्स्ट” नीति की पुनरावृत्ति जैसा माना जा रहा है। भारत के संदर्भ में देखा जाए तो, यूरोप और भारत के बीच व्यापारिक संबंध लगातार मज़बूत हो रहे हैं। आईटी, फार्मा और टेक्सटाइल सेक्टर में भारत EU के लिए एक भरोसेमंद साझेदार बना हुआ है। वहीं, चीन के साथ भी EU के व्यापारिक रिश्ते गहरे हैं। यही कारण है कि EU किसी भी तरह का कठोर व्यापारिक अवरोध खड़ा करने से बचना चाहता है।

हालाँकि, यूरोपीय यूनियन (EU) ने इस प्रस्ताव को साफ तौर पर ठुकरा दिया है। EU का मानना है कि इस तरह का कठोर कदम वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नुकसान पहुँचाएगा और आर्थिक अस्थिरता को जन्म देगा। साथ ही, भारत और चीन जैसे देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को पूरी तरह तोड़ना व्यावहारिक नहीं है। यूरोपीय यूनियन के नेताओं का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था आपसी सहयोग और मुक्त व्यापार पर आधारित है, और ऐसे “अत्यधिक टैरिफ” से सभी देशों को नुकसान उठाना पड़ेगा।

निष्कर्ष यह है कि ट्रंप का प्रस्ताव राजनीतिक दृष्टि से भले ही सशक्त दिखे, पर आर्थिक वास्तविकताओं में यूरोपीय यूनियन ने व्यावहारिक रुख अपनाया है। यह फैसला बताता है कि वैश्विक व्यापार में सहयोग और संतुलन ही आगे बढ़ने का रास्ता है।
Writer – Sita Sahay











