भारत एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। वह भारत जो कभी सामाजिक असमानता, भेदभाव और जातिगत शोषण से ग्रस्त था, आज डिजिटल क्रांति और सरकारी लाभार्थी योजनाओं के माध्यम से एक नए युग की ओर बढ़ रहा है। आज वही समाज, जिसे कभी हाशिए पर रखा गया, अब “फायदे में” है क्योंकि वह “कायदे में” आ गया है — संविधान, शिक्षा और सामाजिक न्याय के कायदे में।
नया भारत: डिजिटल सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव
पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाभार्थी योजनाओं ने देश के गरीब, दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्गों तक पहुंच बनाकर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब तक 4.25 करोड़ घर बनाए जा चुके हैं, जिनमें से लगभग 60% लाभार्थी SC/ST और OBC वर्ग के हैं।
स्वच्छ भारत मिशन ने ग्रामीण भारत के लगभग हर घर तक शौचालय पहुंचाया — अब लगभग 99% गांव खुले में शौच से मुक्त हैं।
इसके अलावा, डिजिटल इंडिया मिशन के तहत UPI ट्रांजेक्शन 2024 में 15,000 करोड़ से अधिक पार कर चुके हैं, जो दर्शाता है कि हर हाथ में मोबाइल और डिजिटल समझ बढ़ी है। अब दलित-पिछड़े समुदाय सिर्फ लाभार्थी नहीं रहे — वे डिजिटल नागरिक बन चुके हैं। वे अब “बेगार” नहीं करते, वे “व्यवस्था में भागीदार” बन चुके हैं।
फुले-आंबेडकर की सदी: चेतना का विस्फोट
आज का दौर वास्तव में फुले-आंबेडकर की सदी है। जिस चेतना की शुरुआत महात्मा ज्योतिबा फुले और डॉ. भीमराव आंबेडकर ने की थी, वह अब देश के हर कोने में पहुंच चुकी है। पहले जो आवाजें दबा दी जाती थीं, अब वे सोशल मीडिया के माध्यम से गूंज रही हैं।
“मैं कहीं नहीं गया, ज़माना चलकर इधर आ गया है” — यह पंक्ति इस युग का सार बताती है।
आज हर वर्ग अपने नायकों को पहचान रहा है। संसद में महात्मा फुले की मूर्ति लगना, सावित्रीबाई फुले पर डाक टिकट जारी होना, पुणे यूनिवर्सिटी का नाम सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी रखा जाना और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलना — यह सब इस नई चेतना का प्रतीक है। बीजेपी सरकार के शासनकाल में ये पांचों ऐतिहासिक कदम हुए हैं, जो दिखाते हैं कि भारत अब अपने असली सामाजिक नायकों को सम्मान देने की दिशा में बढ़ चुका है।

सामाजिक न्याय से आत्म-सम्मान तक
जो समाज कभी केवल “जीने” की लड़ाई लड़ता था, अब वह “सम्मान” की लड़ाई लड़ रहा है।
गांवों में अब दलित-पिछड़े वर्ग बारात घोड़ी पर निकालते हैं, और शहरों में वही वर्ग अब व्यापार, शिक्षा और प्रशासन में अपनी जगह बना रहा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSSO) के अनुसार, OBC वर्ग की औसत आय में पिछले 10 वर्षों में 32% की वृद्धि हुई है, जबकि दलित वर्ग में 28% की बढ़ोतरी हुई है।
ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि यह उस मानसिक क्रांति का प्रमाण है जो भारत के सामाजिक ढांचे में आ रही है।
लोग अब यह समझ चुके हैं कि जो कायदे में रहेगा, वही फायदे में रहेगा। संविधान में विश्वास, शिक्षा में निवेश और आत्म-सम्मान में समर्पण — यही नई सोच का मंत्र बन चुका है।
नए नायक, नया इतिहास
इतिहास अब बदल चुका है। पहले जहां पाठ्यपुस्तकों में केवल कुछ सीमित नाम दर्ज थे, अब उनमें फुले, सावित्रीबाई, पेरियार, कांशीराम, कर्पूरी ठाकुर जैसे नायक शामिल हो रहे हैं। यह बदलाव केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि वैचारिक है।
आज समाज अपने असली प्रेरणास्रोतों को पहचान रहा है और उनके सिद्धांतों पर चल रहा है।
सरकारों को भी अब समझ आ चुका है कि सामाजिक न्याय के बिना राजनीतिक स्थिरता संभव नहीं।
जो सरकारें इन आवाज़ों को नहीं सुनेंगी, वे “इतिहास के कूड़ेदान में” चली जाएंगी — जैसा कि दिलीप मंडल ने बिल्कुल सटीक कहा है।

नया भारत, नई दिशा
आज भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
यह वही भारत है जहाँ हर हाथ में मोबाइल, हर जेब में डिजिटल पहचान, और हर दिल में आत्म-सम्मान है।
अब कोई वर्ग “नीचे” नहीं रहना चाहता, और न ही कोई वर्ग “ऊपर” बने रहना चाहता है — सभी बराबरी की दिशा में बढ़ रहे हैं।
यह परिवर्तन केवल सरकारों का नहीं, बल्कि जनचेतना का परिणाम है।
यह वही चेतना है जो फुले-आंबेडकर से लेकर कांशीराम और कर्पूरी ठाकुर तक पहुंची, और अब आम जन तक उतर आई है।
सच यही है —
👉 जो कायदे में रहेगा, वही फायदे में रहेगा।
👉 जो सामाजिक न्याय को समझेगा, वही भविष्य में सम्मान पाएगा।
👉 और जो नहीं सुनेगा, वह इतिहास के कूड़ेदान में जाएगा।
Writer – Prof. Dilip Mandal Sir (Dilip C. Mandal Senior Journalist, Author, and Media Expert)











