“लहरों से लड़ता एक दीपक: बाढ़ में माता-पिता को खोने वाला युवक कैसे बना सफलता की मिसाल”
यह प्रेरणादायक कहानी एक ऐसे युवा आरव की है जिसने भयानक बाढ़ में अपने माता-पिता को खो दिया, लेकिन हार मानने के बजाय अपनी मेहनत और लगन से “हिमालयी ऑर्गेनिक उत्पाद” नामक व्यवसाय खड़ा किया। आज वह लाखों के लिए प्रेरणा है—साहस, संघर्ष और सफलता का प्रतीक।
विनाश की रात –
उत्तराखंड के छोटे से गाँव भागीरथीपुर में 18 वर्षीय आरव अपने माता-पिता के साथ एक साधारण जीवन जी रहा था। उसके पिता किसान थे और माँ स्कूल में सहायक शिक्षिका। सब कुछ सामान्य चल रहा था कि एक दिन पहाड़ों में आई भीषण बारिश ने पूरे इलाके को तबाह कर दिया। रात के अंधेरे में बाढ़ का पानी घरों में घुस गया, पेड़ उखड़ गए, पुल बह गए और लोगों की चीखें पहाड़ों में गूंज उठीं। आरव और उसका परिवार भी उसी बाढ़ में फंस गया। जब तक मदद पहुंची, बहुत देर हो चुकी थी — आरव के माता-पिता बाढ़ की भयंकर लहरों में बह चुके थे। उस दिन आरव ने न सिर्फ अपने माँ-बाप को खोया, बल्कि अपने जीवन की दिशा भी खो दी।

सपनों से नई शुरुआत –
बाढ़ के बाद गाँव के लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए। आरव के पास कोई नहीं बचा था, न घर, न सहारा। परंतु उसके अंदर कुछ ऐसा था जो बाढ़ नहीं बहा पाई — उसका साहस। उसने शहर की ओर रुख किया, जहाँ उसने दिन में होटल में बर्तन धोने और रात में गार्ड की नौकरी की। पेट भरने और रहने के लिए संघर्ष करते हुए भी आरव के मन में एक सपना पल रहा था — “एक दिन मैं खुद का कुछ करूंगा, ऐसा कि मेरे माँ-बाप गर्व महसूस करें।” आरव ने अपने खाली समय में इंटरनेट पर बिजनेस से जुड़ी बातें सीखनी शुरू कीं। उसे एहसास हुआ कि “छोटा व्यापार भी बड़ा सपना बन सकता है, अगर उसमें मेहनत और ईमानदारी हो।”
संघर्ष का दौर –
कई सालों की मेहनत के बाद आरव ने थोड़ा पैसा जोड़ा और शहर के एक कोने में एक छोटी सी दुकान खोली — “हिमालयी ऑर्गेनिक उत्पाद”। शुरुआत में लोग उस पर हंसे, कुछ ने कहा “ये पहाड़ी लड़का क्या बड़ा व्यापारी बनेगा?” पर आरव ने किसी की नहीं सुनी। वह खुद अपने गाँव से जड़ी-बूटियाँ लाता, उन्हें पैक कर बेचता और ग्राहकों को समझाता कि ये शुद्ध और प्राकृतिक हैं। धीरे-धीरे उसकी सच्चाई और मेहनत ने लोगों का दिल जीत लिया। शुरुआती महीनों में घाटा हुआ, पर आरव ने हार नहीं मानी। उसने सोशल मीडिया पर अपने उत्पादों का प्रचार किया, स्थानीय मेलों में स्टॉल लगाए और हर ग्राहक को परिवार जैसा सम्मान दिया। उसकी यही ईमानदारी उसकी सबसे बड़ी पूंजी बन गई।

सफलता की ऊँचाइयाँ –
तीन साल बाद “हिमालयी ऑर्गेनिक उत्पाद” पूरे उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि दिल्ली, मुंबई और जयपुर तक पहुँच गया। आरव की कंपनी अब लाखों का कारोबार करने लगी थी। उसने अपने जैसे अनाथ और गरीब बच्चों को रोजगार दिया, ताकि कोई और बच्चा भूख या मजबूरी से न झुके। उसकी मेहनत और दया ने उसे समाज में एक नई पहचान दी। समय के साथ उसने अपने ब्रांड को ऑनलाइन मार्केट में उतारा, जहाँ उसकी कंपनी “भारत के सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण स्टार्टअप्स” में गिनी जाने लगी। आरव के नाम पर आज भी कई युवा प्रेरणा लेते हैं, और वह खुद हर बार कहता है — “सफलता कभी विरासत में नहीं मिलती, उसे अपनी आँसुओं से तराशना पड़ता है।”
मिसाल बन चुका दीपक –
आज आरव का नाम देश के टॉप यंग एंटरप्रेन्योर में लिया जाता है। उसने अपने गाँव में एक स्कूल और राहत केंद्र बनवाया जहाँ हर साल बाढ़ पीड़ितों को सहायता मिलती है। आरव अक्सर कहता है — “माँ-बाप भले चले गए, पर उन्होंने मुझे इंसानियत की सीख दी थी, वही मेरी असली पूँजी है।” वह हर वर्ष अपनी कंपनी के लाभ का एक हिस्सा उन बच्चों की शिक्षा में लगाता है जो अपने माता-पिता को खो चुके हैं। उसकी कहानी इस बात की गवाही है कि हालात चाहे जितने भी कठिन क्यों न हों, मेहनत और लगन से इंसान अपनी किस्मत खुद लिख सकता है।

आरव आज एक जिंदा मिसाल है — जिसने बाढ़ में सब कुछ खोकर भी दुनिया को दिखा दिया कि अगर हौसले बुलंद हों तो लहरें भी झुक जाती हैं।
संदेश–
जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी त्रासदी क्यों न आए, अगर आपके पास दृढ़ संकल्प, मेहनत और ईमानदारी है, तो आप भी आरव की तरह अंधेरे में रोशनी बन सकते हैं।
Writer – Somvir Singh











