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अमेरिकी राजनीति में H-1B वीज़ा विवाद फिर चर्चा में

अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर बहस तेज़ हो गई है। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने विदेशी कर्मचारियों को “सस्ता श्रमिक” बताते हुए कहा कि अमेरिका को कम वेतन वाले प्रवासियों की आवश्यकता नहीं है। वेंस ने दावा किया कि डेमोक्रेट मॉडल विदेशी कामगारों के आयात को बढ़ावा देता है, जिससे अमेरिकी नौकरियों और वेतन पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह चुनाव कम वेतन वाले प्रवासियों बनाम तकनीक से मजबूत अमेरिकी नागरिकों के बीच है। वेंस का कहना है कि ट्रंप मॉडल ही अमेरिका को आर्थिक विकास और समृद्धि की राह पर ले जाएगा।

अमेरिका में H-1B वीज़ा हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन 2025 में यह बहस और तेज़ हो गई है। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस (JD Vance) के हालिया बयान ने इस विवाद को नई दिशा दे दी है। वेंस ने विदेशी कामगारों को “सस्ते नौकर” कहकर संबोधित किया और कहा कि अमेरिका को ऐसे विदेशी कर्मचारियों की जरूरत नहीं है जो कम वेतन पर अमेरिकी नौकरियों पर कब्ज़ा करें। यह बयान ऐसे समय में आया है जब टेक सेक्टर लगातार विदेशी टैलेंट पर निर्भर रहा है, और कई अमेरिकी कंपनियाँ H-1B वीज़ा की संख्या बढ़ाने की मांग कर रही हैं। वेंस का कहना है कि मौजूदा डेमोक्रेटिक मॉडल कम वेतन वाले प्रवासियों के आयात को बढ़ावा देता है, जिससे अमेरिकी नागरिकों की रोजगार सुरक्षा घटती है।

विदेशी कामगारों को “सस्ते नौकर” बताने का अर्थ क्या है?

जेडी वेंस ने सीन हैनिटी के शो में कहा कि विदेशी कर्मचारियों को “cheap labor” यानी सस्ता श्रमिक कहना गलत नहीं है, क्योंकि कंपनियाँ उन्हें कम वेतन पर नियुक्त करती हैं। वेंस के मुताबिक, इसका नुकसान सीधे अमेरिकी परिवारों को होता है जिनकी नौकरी, वेतन और जीवन स्तर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह बयान अमेरिकी टेक इंडस्ट्री के दावों से बिल्कुल उलट है, जो कहती है कि विदेशी कर्मचारी उच्च कौशल वाले होते हैं और अमेरिका की आर्थिक जरूरतों को पूरा करते हैं।

वेंस ने कहा कि डेमोक्रेटिक नीतियाँ अमेरिका में कम वेतन वाले प्रवासियों की बाढ़ ला रही हैं, जिससे स्थानीय कामगार कमजोर हो रहे हैं। उनका तर्क है कि यह मॉडल सिर्फ कॉरपोरेट कंपनियों के लिए फायदेमंद है, जबकि आम नागरिकों के भविष्य को प्रभावित करता है।

कम वेतन वाले प्रवासी बनाम तकनीकी रूप से मजबूत अमेरिकी” – चुनाव का असली मुद्दा

वेंस ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि 2025 का चुनाव केवल पार्टियों के बीच नहीं बल्कि कम वेतन वाले प्रवासियों और तकनीकी रूप से मजबूत अमेरिकी नागरिकों के बीच की लड़ाई बन गया है। उनका दावा है कि अमेरिकी युवाओं को तकनीक, AI और उद्योगों में वह मौका नहीं मिल रहा, जो उन्हें मिलना चाहिए था।

उनके अनुसार, ह-1बी वीज़ा का दुरुपयोग कर बड़ी कंपनियाँ अधिक मुनाफा कमाती हैं और अमेरिकी कर्मचारियों के लिए अवसर घट जाते हैं। वेंस का कहना है कि अगर अवसर और संसाधन सही ढंग से वितरित किए जाएँ तो अमेरिकी नागरिक इन क्षेत्रों में और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। यह बयान ट्रंप प्रशासन की नीति से मेल खाता है, जो “America First” मॉडल पर जोर देता है, जिसमें स्थानीय नौकरियों और स्थानीय टैलेंट को प्राथमिकता दी जाती है।

ट्रंप मॉडल बनाम डेमोक्रेट मॉडल: अमेरिका का भविष्य किसके हाथ में?

वेंस ने कहा कि अमेरिकी जनता के पास अब दो विकल्प हैं—एक ओर डेमोक्रेट का मॉडल है जो अधिक प्रवासियों को कम वेतन पर लाकर बाजार को सस्ता बनाए रखना चाहता है, और दूसरी ओर ट्रंप का मॉडल है जो अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग प्रस्तुत करता है। वेंस के अनुसार, ट्रंप मॉडल सिर्फ प्रवासियों को रोकने की नीति नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों को उच्च वेतन, बेहतर अवसर और तेज आर्थिक विकास देना है। यह मॉडल स्थानीय प्रतिभा को प्राथमिकता देता है, तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देता है और टेक कंपनियों को घरेलू भर्ती के लिए प्रेरित करता है।

हालाँकि, आलोचकों का मानना है कि विदेशी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाने से नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक असर पड़ेगा। लेकिन वेंस का दावा है कि अधिक प्रवासियों का आयात अमेरिकी सपने को कमजोर कर रहा है, और इसे बदलना जरूरी है।

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Writer -Sita Sahay

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