CPCB की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली-NCR में ओज़ोन प्रदूषण 8 घंटे की सीमा से ऊपर पहुंचा। जानें इसके कारण, प्रभाव और NGT के नए कदम।
ओज़ोन प्रदूषण: अदृश्य लेकिन घातक खतरा
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण अब कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में एक नया और खतरनाक प्रदूषक तेजी से उभर रहा है — ओज़ोन (O₃)। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के 57 निगरानी केंद्रों में से 25 में ओज़ोन प्रदूषण का स्तर 8 घंटे की सीमा से अधिक पाया गया। यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यह दर्शाता है कि क्षेत्र की आबादी का बड़ा हिस्सा ज़हरीली हवा में सांस ले रहा है।
ओज़ोन प्रदूषण को अक्सर “छिपा हुआ प्रदूषण (Invisible Pollution)” कहा जाता है, क्योंकि यह सीधे उत्सर्जित नहीं होता। यह तब बनता है जब वाहन, कारखाने और बिजली संयंत्रों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) सूर्य की गर्मी और प्रकाश के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। गर्मियों और धूप वाले दिनों में यह प्रक्रिया और तेज़ हो जाती है, जिससे ग्राउंड लेवल ओज़ोन का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है।
भारत में ओज़ोन की 8 घंटे की मानक सीमा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m³) तय की गई है, जबकि कई निगरानी केंद्रों में यह 150-180 µg/m³ तक पहुंच गया। यह न केवल WHO के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए सीधा खतरा भी है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर: सांस की हर लहर में जहर
ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओज़ोन हमारी ढाल है, जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों (UV rays) से हमें बचाती है। लेकिन जमीन के स्तर पर यही ओज़ोन एक ज़हरीली गैस बन जाती है। यह फेफड़ों को नुकसान, सांस की तकलीफ़, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, और यहां तक कि हृदय रोगों के खतरे को भी बढ़ा देती है।
AIIMS और TERI की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में लगभग 35% शहरी बच्चों को सांस लेने में कठिनाई की शिकायत रहती है, जिसमें ओज़ोन प्रदूषण एक प्रमुख कारक है। इसके अलावा, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण लगभग 17,000 समयपूर्व मौतें दर्ज की गईं। पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी ओज़ोन प्रदूषण बेहद हानिकारक है। यह पौधों की पत्तियों को जलाकर उनकी प्रकाश संश्लेषण की क्षमता को घटाता है, जिससे खेती और फसल उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।
अध्ययनों से पता चला है कि NCR क्षेत्र में गेहूं और चावल की पैदावार में 10-12% तक की गिरावट ओज़ोन प्रदूषण से जुड़ी है।

समाधान की दिशा में कदम: विशेषज्ञ समिति और जनभागीदारी की ज़रूरत
इस बढ़ते संकट को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने गहरी चिंता जताई है और ओज़ोन प्रदूषण व इसके कारकों को नियंत्रित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की है। यह समिति CPCB, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC), आईआईटी-डी और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर दीर्घकालिक नियंत्रण योजना (Long-Term Action Plan) तैयार करेगी।
मुख्य लक्ष्य होंगे:
- वाहनों से होने वाले NOx और VOC उत्सर्जन को कम करना।
- औद्योगिक क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा तकनीक का उपयोग बढ़ाना।
- इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को मजबूत बनाना।
- नागरिकों में जागरूकता बढ़ाना कि एसी, जनरेटर और वाहनों का अत्यधिक प्रयोग ओज़ोन निर्माण को बढ़ाता है।
दिल्ली सरकार ने भी हाल में घोषणा की कि वह “ग्रीन दिल्ली ऐप” के जरिए नागरिकों को प्रदूषण की शिकायत दर्ज करने का सीधा प्लेटफॉर्म देगी। साथ ही, इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) के सहयोग से रीयल-टाइम ओज़ोन मॉनिटरिंग की व्यवस्था शुरू की जा रही है ताकि जनता को समय पर चेतावनी दी जा सके।

निष्कर्ष: जब हवा ही जहर बन जाए
दिल्ली-एनसीआर का ओज़ोन प्रदूषण यह चेतावनी है कि अब केवल धूल या स्मॉग नहीं, बल्कि रासायनिक प्रदूषक भी हमारे फेफड़ों में ज़हर घोल रहे हैं। यदि सरकार, उद्योग और आम नागरिक एकजुट होकर ठोस कदम नहीं उठाते, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली की हवा सांस लेने योग्य नहीं रहेगी।
यह समय है कि हर नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी समझे —
🚫 गाड़ी का कम इस्तेमाल करे,
🌳 पेड़ लगाए,
💡 ऊर्जा बचाए,
और मिलकर इस अदृश्य प्रदूषण के खिलाफ दृश्यमान कदम उठाए।
क्योंकि साफ हवा कोई विलासिता नहीं — यह हमारा अधिकार है।
Writer – Sita Sahay











