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BRICS: उभरती वैश्विक ताक़त का नया चेहरा

जानिए BRICS क्या है, क्यों बनाया गया, इसके उद्देश्य क्या हैं, भारत और अन्य देशों को BRICS से क्या फायदे होंगे, किसे नुकसान होगा और BRICS का भविष्य क्या है।

BRICS के आँकड़े, उपलब्धियां और भविष्य की संभावनाएं

BRICS क्या है यह अब केवल एक सवाल नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। वर्तमान में BRICS देशों की कुल जनसंख्या लगभग 3.2 अरब (दुनिया की 40% से अधिक) है और इनकी संयुक्त GDP करीब 27 ट्रिलियन डॉलर यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 27% है। BRICS देशों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार 400 अरब डॉलर से अधिक है और आने वाले वर्षों में इसमें 10% वार्षिक वृद्धि का अनुमान है। 2014 में बने New Development Bank (NDB) ने अब तक 30 अरब डॉलर से ज्यादा की परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें ऊर्जा, आधारभूत ढांचा और ग्रीन टेक्नोलॉजी प्रमुख हैं। भारत को स्मार्ट सिटी और ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स में सीधा लाभ मिला है, जबकि रूस और चीन ने ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश किए हैं। भविष्य की projections बताती हैं कि 2030 तक BRICS देशों की वैश्विक GDP में हिस्सेदारी 33% तक पहुँच सकती है और यह समूह G7 को भी चुनौती देगा। इस प्रकार BRICS की achievements और statistics यह साबित करते हैं कि यह संगठन आने वाले दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन का नया केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है।

BRICS क्यों बनाया गया?

BRICS एक अंतरराष्ट्रीय समूह है जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इसका गठन 2009 में हुआ और 2010 में दक्षिण अफ्रीका को शामिल करने के बाद इसे BRICS कहा जाने लगा। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को भी वैश्विक स्तर पर उतनी ही ताक़त और पहचान मिले जितनी विकसित देशों को मिलती है।

लंबे समय तक वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर अमेरिका और यूरोपीय देशों का दबदबा रहा। विश्व बैंक (World Bank) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी संस्थाओं में पश्चिमी देशों का वर्चस्व साफ दिखता है। ऐसे में BRICS का निर्माण एक वैकल्पिक शक्ति केंद्र के रूप में हुआ ताकि दुनिया एकध्रुवीय (Unipolar) न रहे, बल्कि बहुध्रुवीय (Multipolar) दिशा में आगे बढ़ सके।

BRICS के प्रमुख उद्देश्य और कामकाज

BRICS का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाएं आपस में सहयोग करके वैश्विक विकास का नया मॉडल तैयार करें। इसके तहत कई पहल की गई हैं:

  1. New Development Bank (NDB):
    2014 में स्थापित इस बैंक का मकसद विकासशील देशों को इंफ्रास्ट्रक्चर और सतत विकास परियोजनाओं के लिए सस्ती फंडिंग देना है। आज NDB ने 30 अरब डॉलर से अधिक की परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें भारत, ब्राज़ील और रूस के बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं।
  2. Contingent Reserve Arrangement (CRA):
    यह एक वित्तीय सुरक्षा जाल है जिससे सदस्य देश आर्थिक संकट (जैसे मुद्रा की गिरावट या पूंजी बहिर्गमन) की स्थिति में मदद ले सकते हैं।
  3. व्यापार और निवेश सहयोग:
    BRICS देश आपसी व्यापार में डॉलर की जगह अपनी स्थानीय मुद्राओं का इस्तेमाल करने पर काम कर रहे हैं। 2023 में BRICS देशों के बीच कुल व्यापार लगभग 400 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है।
  4. वैश्विक मुद्दों पर सहयोग:
    BRICS जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल तकनीक जैसे क्षेत्रों में मिलकर नीतियां बना रहा है।

BRICS के फायदे: भारत और अन्य देशों के लिए सुनहरा अवसर

BRICS का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह देशों को आर्थिक स्वतंत्रता और कूटनीतिक ताक़त देता है।

भारत के लिए फायदे:

वित्तीय सहयोग: भारत को NDB से कई परियोजनाओं के लिए लोन मिला है, जैसे ग्रीन एनर्जी, स्मार्ट सिटी और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर।ऊर्जा सुरक्षा: रूस और ब्राज़ील जैसे देशों से भारत को तेल और ऊर्जा का स्थिर आपूर्ति स्रोत मिलता है। डॉलर पर निर्भरता कम: यदि BRICS देश अपनी मुद्राओं में व्यापार करना शुरू करते हैं, तो भारतीय रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्थिति मज़बूत होगी। तकनीकी और डिजिटल सहयोग: चीन और रूस जैसे देशों से भारत को डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर सिक्योरिटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में सहयोग मिलेगा।

अन्य देशों के लिए फायदे:

रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों का विकल्प मिलता है। चीन को वैश्विक राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिलता है। ब्राज़ील को कृषि और खनिज क्षेत्र में निवेश का फायदा होगा। दक्षिण अफ्रीका को रोजगार और औद्योगिक विकास के नए अवसर मिलेंगे। आज BRICS की आबादी लगभग 3.2 अरब (दुनिया की 40% जनसंख्या) है और इनकी संयुक्त GDP लगभग 27 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 27% है। ऐसे में यह समूह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में गिना जा रहा है।

BRICS से किसे होगा नुकसान?

BRICS के मज़बूत होने से सबसे बड़ा नुकसान अमेरिका और यूरोपीय देशों को होगा।

डॉलर का वर्चस्व कम होगा: आज दुनिया के 80% से ज्यादा व्यापार डॉलर में होते हैं। अगर BRICS देश अपनी मुद्राओं का उपयोग करना शुरू कर देते हैं, तो डॉलर की पकड़ ढीली हो जाएगी। IMF और World Bank की पकड़ कमजोर होगी: NDB जैसे विकल्प आने से विकासशील देश अब पश्चिमी शर्तों पर निर्भर नहीं रहेंगे। राजनीतिक प्रभाव कम होगा: अब वैश्विक निर्णयों में केवल पश्चिमी देशों की नहीं चलेगी, बल्कि BRICS जैसी शक्तियां भी अपनी बात रखेंगी। कंपनियों को नुकसान: यूरोप और अमेरिका की कंपनियों को विकासशील देशों में पहले जितना बाज़ार और प्रभाव मिलता था, अब उतना नहीं मिल पाएगा। यानी BRICS का उभार एक तरह से पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती है और यह विश्व राजनीति को संतुलित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

निष्कर्ष: BRICS का भविष्य और वैश्विक परिदृश्य

आज BRICS सिर्फ एक आर्थिक समूह नहीं बल्कि एक वैश्विक शक्ति केंद्र बन चुका है। यह दुनिया के 5 बड़े महाद्वीपों को जोड़ता है और आने वाले समय में इसमें नए देशों की सदस्यता भी दी जा सकती है। भारत जैसे देशों के लिए BRICS कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से फायदेमंद है। वहीं, पश्चिमी देशों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। अगर BRICS सही दिशा में आगे बढ़ा तो यह विश्व व्यवस्था को पूरी तरह बदल सकता है।

भविष्य में BRICS की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसके सदस्य देश आपसी मतभेद (जैसे भारत-चीन सीमा विवाद या रूस-चीन-भारत की अलग-अलग नीतियां) को किनारे रखकर कितनी मजबूती से साथ रहते हैं। अगर यह एकजुट रहा, तो BRICS निश्चित रूप से आने वाले दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी और प्रभावशाली संस्थाओं में गिना जाएगा।

Writer – Sita Sahay

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