भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है – यह बात हर कोई जानता है, लेकिन क्या हमारी शिक्षा प्रणाली सच में धर्मनिरपेक्ष (Secular Education) है?
संविधान का Article 28 कहता है कि किसी भी सरकारी वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। मगर सवाल यह है कि — “क्या यह अनुच्छेद कभी सच में लागू हुआ?”
आज भी भारत के हजारों स्कूलों में “धर्म के नाम पर शिक्षा” का खेल चल रहा है। संविधान के इस अनुच्छेद की आत्मा को हम धीरे-धीरे अनदेखा करते जा रहे हैं। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों Article 28 पूरी तरह लागू नहीं हो पाया, और अगर हो जाए, तो भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्या क्रांति आ सकती है।
⚖️ अनुच्छेद 28 क्या कहता है – धर्म और शिक्षा को अलग रखने का संकल्प
संविधान निर्माताओं ने साफ कहा था कि “राज्य की शिक्षा धर्म से अलग होगी।”
Article 28(1) के अनुसार – “किसी भी शैक्षणिक संस्थान में जो पूर्णतः राज्य के धन से चलता है, वहाँ धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।”
मतलब, सरकारी स्कूलों में भगवद् गीता, कुरान या बाइबल जैसे ग्रंथों की शिक्षा थोपना असंवैधानिक है।
Article 28(3) आगे कहता है – कोई भी छात्र किसी धार्मिक शिक्षा या उपासना में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

👉 आंकड़ों की बात करें तो, Education Ministry के अनुसार भारत में लगभग 10.6 लाख सरकारी स्कूल हैं, और इनमें करीब 26 करोड़ विद्यार्थी पढ़ते हैं। अगर Article 28 सही मायनों में लागू होता, तो इन 26 करोड़ बच्चों को “धर्म-निरपेक्ष शिक्षा” का वास्तविक अधिकार मिलता।
पर हकीकत यह है कि – आज भी कई सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थानों में सुबह की प्रार्थनाओं, धार्मिक श्लोकों और “एक धर्म विशेष” के प्रतीकों का बोलबाला है।
🚨 क्यों नहीं हो पाया लागू? — धर्म, राजनीति और दिखावे की तिकड़ी
भारत में Article 28 का पूरा क्रियान्वयन असफल रहा है, और इसके पीछे कई सच्चाइयाँ छिपी हैं —
🔸 1. धर्म और राजनीति का गठजोड़
राजनीति में धर्म सबसे आसान भावनात्मक हथियार है। जब शिक्षा नीति पर चर्चा होती है, तो धार्मिक संगठन और राजनीतिक दल उसमें अपना रंग भर देते हैं। यही कारण है कि कई राज्य अपनी स्कूल नीतियों में “संस्कृत प्रार्थनाएं”, “मॉर्निंग श्लोक”, या “धार्मिक प्रतीक” जोड़ देते हैं।
🔸 2. शिक्षा संस्थानों की दोहरी फंडिंग व्यवस्था
भारत में “aided schools” यानी अर्ध-सरकारी संस्थान भी हैं, जिन्हें आंशिक रूप से सरकार से पैसा मिलता है और आंशिक रूप से निजी ट्रस्ट चलाते हैं। ये स्कूल Article 28 के “grey zone” में आ जाते हैं।
2019 के एक सरकारी सर्वे के अनुसार, देश में 43% स्कूल ऐसे हैं जिन्हें आंशिक सरकारी सहायता मिलती है। इनमें धर्म आधारित शिक्षा रोकना लगभग असंभव हो जाता है।
🔸 3. जागरूकता की भारी कमी
अभिभावक और छात्र दोनों ही इस अनुच्छेद के अधिकारों से अनजान हैं। वे समझते ही नहीं कि अगर किसी स्कूल में “धर्म विशेष” की शिक्षा दी जा रही है, तो यह संविधान का उल्लंघन है।
कितनी बार हमने देखा है कि बच्चों को कहा जाता है “गीता पाठ करो” या “हिंदी प्रार्थना गाओ”, भले ही वे किसी और धर्म से हों।
🔸 4. नीति में धर्मनिरपेक्षता का अभाव
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में “Secular Education” शब्द तक नहीं लिखा गया है। यह बताता है कि सरकारें अब धर्म-निरपेक्षता की जगह “संस्कृतिक शिक्षा” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके मुद्दे से बचना चाहती हैं।

🔥 अगर Article 28 पूरी तरह लागू हो जाए, तो क्या बदलेगा भारत का चेहरा?
मान लीजिए, कल से भारत में Article 28 “पूरी तरह” लागू कर दिया जाए।
यानी कोई सरकारी स्कूल धार्मिक शिक्षा नहीं देगा, कोई छात्र मजबूर नहीं होगा, और सभी धर्म समान दृष्टि से देखे जाएंगे। तो नतीजे कुछ ऐसे होंगे 👇
✅ 1. शिक्षा का असली अर्थ लौटेगा
शिक्षा का मतलब होगा विज्ञान, तर्क, नैतिकता और समानता — न कि धर्मग्रंथों के उद्धरण। इससे विद्यार्थी धर्म के बजाय ज्ञान से जुड़ेंगे।
✅ 2. सामाजिक एकता को नया आयाम मिलेगा
धर्म के आधार पर बच्चों को अलग देखने की मानसिकता खत्म होगी। स्कूल एक “निष्पक्ष स्थान” बन जाएंगे, जहाँ हर धर्म के छात्र बराबरी से पढ़ेंगे।
✅ 3. संवैधानिक मूल्यों की जड़ें मजबूत होंगी
जब बच्चे संविधान के अनुसार शिक्षा पाएंगे, तो वे समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे की भावना के साथ बड़े होंगे — वही मूल्य जो हमारे प्रस्तावना (Preamble) में लिखे हैं।
✅ 4. भारत बनेगा असली “सेक्युलर एजुकेशन मॉडल”
UNESCO की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, जो देश शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता को अपनाते हैं, वहाँ सामाजिक सामंजस्य 42% अधिक और हिंसा की घटनाएँ 35% कम होती हैं।
अगर भारत इसे अपनाए, तो यह विश्व के सामने एक मॉडल देश बन सकता है।

🧭 निष्कर्ष – धर्म से ऊपर उठकर शिक्षा की नई परिभाषा
Article 28 सिर्फ एक कानूनी धारा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है — जो कहती है कि “धर्म व्यक्तिगत है, शिक्षा राष्ट्रीय।”
जब तक धर्म और शिक्षा को पूरी तरह अलग नहीं किया जाएगा, तब तक भारत का शिक्षा-तंत्र सच में “आधुनिक” नहीं बन पाएगा।
आज जरूरत है कि सरकारें और समाज मिलकर Article 28 को कागज़ से निकालकर क्लासरूम तक पहुँचाएँ।
क्योंकि जो देश अपने बच्चों को धर्म से ऊपर उठकर सोचने की आज़ादी देता है, वही असली “विश्वगुरु” कहलाने का हकदार है। यह ब्लॉग Article 28 of Indian Constitution पर केंद्रित है, जो भारत में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा (Secular Education) को सुनिश्चित करने का संवैधानिक अधिकार देता है। इसमें बताया गया है कि यह अनुच्छेद अभी तक पूरी तरह लागू क्यों नहीं हो पाया, इसके सामाजिक-राजनीतिक कारण क्या हैं, और इसके लागू होने से शिक्षा-व्यवस्था में क्या परिवर्तन आएगा।
Writer – Sita Sahay










